धीरे-धीरे
बिना रुके
ऊपर से
ख़ाली होती जाती है
रेतघड़ी ।
सबकी नज़रों में
रहता है
उसका ख़ाली होना
और वे नहीं देखते
नीचे से वह
भरती जा रही है ।
देर या सबेर
आएगा
वह लमहा
ऊपर जब
ख़ाली होने को
कुछ भी न बचेगा
और इतिहास का कठोर हाथ
उसे पलट देगा
ताकि
सिलसिला जारी रहे ।