भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताज़गी से हरा भरा मौसम / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
ताज़गी से हरा भरा मौसम।
एक पाल देख लो ज़रा मौसम।
शाम कितनी उदास लगती है,
सुबह देता है मुस्कुरा मौसम।
फूल हरसू लुटा रहा ख़ुशबू,
कुछ न छोड़ा गगन-धरा मौसम।
चाहे झटको इसे निगाहों से,
पर न होता है बेसुरा मौसम।
क्यों है इतनी कशिश अभी तुममें,
इस क़दर है डरा-डरा मौसम।
आरज़ू कर रहे हो तुम इसको,
तेरी बाँहों में है भरा मौसम।
रूठना तेरा कितना प्यारा है,
कह दूँ कैसे है सरफिरा मौसम।