भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताज़ी लयकारी / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
परिवार ने कहा
‘सुनाएं कविता!’
मुरैना स्टेशन से गुजरती ट्रेन से मैंने पूछा
‘कविता है यह या है कच्चा अनुभव!’
मैं यात्रा के कच्चे अनुभवों की खोजता रहा लय
धान के खेतों ने पूछा
‘कब सुनी थी मेरी लहरदार तान!’
फिर मैं चुपचाप साधता रहा
अनुभव की ताजी लयकारी!