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ताल-मेल / मुकेश तिलोकाणी

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ॾातर ॾे पियो
हू, वठे पियो।
बिना महिनत जे
मिस्कीन चवाऐ
पाण बचायो।
सभिनी जी राइ
”हू“ ॼाणू
परियां परखींदडु
छा चवां!
अंधी नज़र
ताल-मेलु
सहिमती, साइत
आखि़र छा?
जा ख़बर
सा, खुदा खे!