भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे लिए / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
तुम रो रहे हो
मेरी गोद में
सिर रखकर
किसी और के लिए
मैं तो रो भी नहीं सकती
किसी के सामने
तुम्हारे लिए।