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तुम्हारे लिए / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
छान्ही पर रोज ही बैठती है एक चिड़िया
चहकती है कुछ देर
और लौट जाती है
नीम के पेड़ की ओर
बहुत देर तक बजता है एक सन्नाटा
पिफर मन के डैने
पफड़पफड़ाते हैं
और बार-बार
मैं लौट जाना चाहता हूँ
एक छूट गए घरौंदे में
सिर्पफ तुम्हारे लिए