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तुम्हे छूकर / शलभ श्रीराम सिंह
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तुम्हे छूकर
ख़ुद को छूने का अहसास हुआ
तुम्हें पाकर
ख़ुद को पाने का
तुम्हें जीकर
ख़ुद को जीने का अहसास हुआ
ख़ुद को खोने के लिए
तुम्हें खोने की तैयारी कर रहा हूँ मैं।
रचनाकाल : 1992, विदिशा