भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम जो आओ बहार आ जाये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम जो' आओ बहार आ जाये
हर कली पर निखार आ जाये

भानु जो आँख खोल दे अपनी
कंज कलियों को' प्यार आ जाये

तितलियाँ पर समेट लें अपने
जब भी' फूलों पे' खार आ जाये

कीच देखो उठा चलो कपड़े
रोक ले हाथ वार आ जाये

सत्य की राह यदि चलें सारे
नीतियों में सुधार आ जाये

एक पग जब बढ़ा दिया आगे
मुश्किलें फिर हज़ार आ जाये

कोई जाने से रुक न पायेगा
मौत की यदि पुकार आ जाये