भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा गुरूर तुझे कहाँ ले आया / तारा सिंह
Kavita Kosh से
तेरा गुरूर तुझे कहाँ ले आया
दर्द डूबा था जहाँ, वहाँ ले आया
न खुद से मिल सकी, न खुदा से तू
ये किसका पता तेरा दिलबरा ले आया
गुल की हसरतें गर्दे-परेशां हुई
बहार को लूटकर बागबां ले आया
तेरी हसरतों को दिल में ला न सका
दरो दीवार से टपकता बयाबां ले आया
हर रंग तेरी नजर में फ़ीका है, मैं
लहू में रंगकर अपनी जां ले आया