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तेरी चाह में / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
पाखी मरता
पता झरता
रूंख ठूंठ हो जाता
एक तेरी चाह में
इस मरुधरा पर
क्या-क्या नहीं हो जाता।
भूख काटता
धूल चाटता
मरु मिनख डाकी हो जाता
तुम बिन
पल भी पल नहीं पाता
नाड़ नाखता
प्राण त्यागता
सुध-बुध खो जाता
तुझ बिन मरु प्राणी
पल-पल
तिल-तिल
मर-मर रह जाता।