भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं
हो जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं
तेरे मेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना
जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी...
तेरे दुख अब मेरे, मेरे सुख अब तेरे
तेरे ये दो नैना, चांद और सूरज मेरे
ओ मेरे जीवन साथी...
लाख मना ले दुनिया, साथ न ये छूटेगा
आ के मेरे हाथों में, हाथ न ये छूटेगा
ओ मेरे जीवन साथी...