भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
त्याग / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
दियो जिन प्रान कथा सुख संपति बीच मिले वहु नेह न कोरे।
होत कहाँ व कहा कहि आव, सो क्यों विसराय करो कछु औरे॥
योग न त्याग विराग गहो, धरनी धन-काज कहाँ पचि दौरे।
अन्तहु तो तजि है सब तोहि सो तून तमजो अबही किन बौरे॥27॥