भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
त्रिपथगा-3 / सुधीर मोता
Kavita Kosh से
उतर गर्भ से आया
नत मस्तक
ठोस धरातल
फिर पग पृथ्वी पर
फिर चला और नीचे
नीचे
वह अंत चरम
उससे भी पहले
एक जीवन में जीवन तीन
अवरोह किया
आरोह लिया
उड़ा फूल कभी अति
प्रसन्न
इति आदि सब देखी
और मध्य भी देखा
देखा सबने
हो तल्लीन !