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दाव बत्तीसा जानऽ ही / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
अइंठ के बइठल घुरची के हम
मुक्का मार छोड़ाबऽ ही
ठहर तनी हम आवऽ ही
झार झपेट गोहार देखलिअइ
ही फट्ट संसार देखलिअइ
दू के बीच लड़ाबे वाला
बइठल हम सरदार देखलिअइ
तोरे कहल कहानी पर हम
अप्पन कलम चलावऽ ही
डेग-डेग पर चूल्हा जोरल
चुटकवन के घर हे फोरल
गुदगरकन के जहर हे घोरल
अइसन तीन तसियन गर्दन पर
तेग चलावे आवऽ ही
मुँह से मीत बना कर के
धुरफंदी घोड़ा घुमा कर के
अँखिया धूल उड़ा करके
बुड़बक बनवे हमां सुमा के
छक्का छोड़वे आवऽ ही
कत्ते घर ओरिअइले देखलूं
ढेर के हम जोरिअइते देखलूं
उक्का आग लगइते देखलूं
आलू सन सिझइते देखलूं
ओखनिन के हम जानऽ ही
नारद हो लड़इतो तोहरा
धासन बीच गिरइतो तोहरा
घुड़की खूब देखइतो तोहरा
चललइ से चललइ न´ चलतइ
दाव बतीसा जानऽ ही।