भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन का मन भर आया /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
साँझ हुई
राजगीर ने
तसला हटाया
बाबू ने
कोट का
बटन लगाया
दिन का
मन भर आया
दुबक चला साया
दुनिया
जैसे बाँझ हुई
साँझ हुई !