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दीपक मेरे मैं दीपों की / रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'

दीपक मेरे मैं दीपों की
सिंदूरी किरणों में डूबे
दीपक मेरे
मैं दीपों की!

इनमें मेरा स्नेह भरा है
इनमें मन का गीत ढरा है
इन्हें न बुझने देना प्रियतम
दीपक मेरे मैं दीपों की!

इनमें मेरी आशा चमकी
प्राणों की अभिलाषा चमकी
हैं ये मन के मोती मेरे
मैं हूँ इन गीले सीपों की

इनको कितना प्यार करूँ मैं
कैसे इनका रूप धरूँ मैं
रतनरी छाँहों में डूबे
दीपक मेरे मैं दीपों की