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दीपक से दीपक जलता है / साग़र पालमपुरी

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दीपक से दीपक जलता है
जब प्यार दिलों में पलता है

तूफ़ान बिरह का उठ्ठे तो
नयनों से नीर छलकता है

तुम ही नहीं होते पनघट पर
सूरज तो रोज़ निकलता है

खिलते हैं फूल उमंगों के
जब मौसम रंग बदलता है

हर याद सुलगती है जैसे
भट्टी में सोना गलता है

हर पग हो जाता है बोझिल
जब उम्र का सूरज ढलता है

तुम लाख जतन कर लो ‘सागर’
क़िस्मत का लिखा कब टलता है