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दीमकें / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
बहुत तेज़ी से हमला करती हैं
दीमकें
ऊपरी तौर पर दिखाई नहीं देतीं
मगर भीतर ही भीतर खोखला
कर देती हैं इनसान को
किसी दिन हवा के हल्के
झोंके से बालू के टीले-सा
भरभराकर गिर पड़ता है
फिर कभी न उठ पाने के लिए ।