भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीवाळी रै दिन / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भारतीय जन-मानस नै
दुःःख-दाळद स्यूं
बा‘र निकळन री
कोसिस करतां
देखणो होवै तो
देखै कोई
दिवाळी रै दिन
पटाकां-मिठाइयां री
दुकानां रो तो
कैणों ही के
सब्जीआळी दुकानां तक
देखीजै
भीड़ ।