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दुनिया का जो मेला है / आभा पूर्वे
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दुनिया का जो मेला है
चोर-सिपाही-खेला है ।
कैसे कह दूँ समय शांत है
चलता ले कर ढेला है ।
उसका सपना और बढ़ा है
जिसके हाथ अधेला है।
हथियाने की बात जहाँ है
गुरु से आगे चेला है ।
भरी भीड़ में उसको देखा
मुझको लगा अकेला है
नींद नहीं आती आँखों को
घोर निशा की वेला है।
मुझको अपनों ने गाली दी
ऐसा दुःख भी झेला है ।