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दूर ठहर मत ले पंगा / रंजना वर्मा
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दूर ठहर मत ले पंगा।
शिव के शीश चढ़ी गंगा॥
लोभ मोह में फँस कर यूँ
क्यों तू करता है दंगा॥
बन्धन तोड़ो माया के
मन बिल्कुल होगा चंगा॥
भ्रम से ही है जगत बना
इंद्र-धनुष-सा सतरंगा॥
चुटकी भर सुख माँग रहा
द्वार खड़ा है भिखमंगा॥
लाज शर्म सब नष्ट हुई
नाचे नर हो कर नङ्गा॥
माया की कीचड़ लिपटी
बना रही है बेढंगा॥