भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखो खेते किसनवा जाय रहे / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

देखो खेते किसनवा जाय रहें,
वे तो मस्ती में हैं कछु गाय रहें,
गर्मी की तपती दोपहरिया,
उनखों तनकऊ नाहिं खबरिया,
सिर पे धरके चले गठरिया,
वे तो तन मन की सुध बुध भुलाय रहे।
मेहनत खेतन में वे करते,
मेहनत से तनकऊ नहिं डरते, माटी में अन्न उगाते,
देखो खेतन में हल खो चलाय रहे।
कभऊं-कभऊं ओला पड़ जाते,
बादल पानी उन्हें डराते,
पर वे तनकऊ न घबराते,
देखो भगवान खों वे तो मनाय रहे।
गाय बैल की करें रखवारी,
बाद में करते हैं वे ब्यारी, गांवन की शोभा है न्यारी,
धरती खों स्वर्ग बनाय रहे।
कोऊ न बैठे घर में खाली,
लड़का बिटिया और घरवाली,
जीवन की है नीति निराली
अरे सब खों वे सीख सिखाय रहे।