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देखो तो हमदर्द बड़े हैं / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
देखो तो हमदर्द बड़े हैं
लोग मगर ये सर्द बड़े हैं
हर मौसम की रम्ज़ को जानें
वो पत्ते जो ज़र्द बड़े हैं
हम मंज़िल पर क्या ठहरेंगे
हम आवारा-गर्द बड़े हैं
पोंछ लिये हैं आंख से आंसू
लेकिन दिल में दर्द बड़े हैं
दुन्या एक दुखों का घर है
दुन्या में दुख दर्द बड़े हैं
आ निकले हैं उस की गली में
हम भी कूचा-गर्द बड़े हैं