भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुँआ (32) / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या इस धुएँ की क्रूरता पर
कोई कानूनी प्रतिबंध लगाकर
इसे खत्म कर सकते हैं ।

अथवा इसकी विनाशलीला पर
कड़ी सजा का भय देकर
इसे कम कर सकते हैं ।

नहीं, यह धुँआ
न किसी कानूनी प्रतिबंध से
न किसी सजा के भय से
और न ही
समाज निष्कासन के आरोप से
कम हो सकता है ।

यह धुँआ तो हमेशा के लिए
अपने आप ही
मिटकर रह जाएगा
यदि मानव अपने धर्म की अहं मिटा ले ।