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नहीं जिनके नयनों में लाज / कृष्ण मुरारी पहारिया
Kavita Kosh से
नहीं जिनके नयनों में लाज
वही आसन पर रहे विराज
सुनेगा कौन तुम्हारी व्यथा
कहोगे किससे दुख की कथा
रहो सहते चुप रहकर यथा
अकेले अपनी पीड़ा आज
कहाँ हैं सुख के स्वर स्वच्छन्द
भाव है किसके कर में बन्द
टूटते हैं बन-बनकर छन्द
गिरी है कवि के मन पर गाज
18.08.1962