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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 1

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नामविश्वास

(65)

स्वारथको साजु न समाजु परमारथको,
मोसो दगाबाज दूसरो न जगजाल है ।

कै न आयों , करौं न करौंगो करतुति भली ,
लिखी न बिरंचिहूँ भलाई भूलि भाल है। ।

रावरी सपथ, रामनाम हिी की गति मेंरे,
इहाँ झूठो सो तिलोक तिहूँ काल है।

तुलसी को भलो पै तुम्हारें ही किएँ कृपाल,
कीजै न बिलंबु बलि, पानीभरी खाल है।।

(66)

रागको न साजु, न बिरागु, जोग जाग जियँ,
 काया नहिं छाड़ि देत ठाटिबो कुठाटको।

मनोरातु करत अकाजु भयो आजु लगि,
चाहे चारू चीर, पै लहै न टुकु टाकरो।।

भयो करतालु बड़े क्रूरको कृपालु , पायो,
नामप्रेमु-पारसु , हौं लालची बराटको।

‘तुलसी’ बनी है राम! रावरें बनाएँ,
ना तो धोबी-कैसो कूकरू न घरको , न घाटको।।