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नृपहिं कुँवर राजत मग जात।/ तुलसीदास

(15)

नृपति-कुँवर राजत मग जात |

सुन्दर बदन, सरोरुह-लोचन, मरकत कनकबरन मृदु गात ||

अंसनि चाप, तून कटि मुनि पट, जटामुकुट बिच नूतन पात |
फेरत पानि सरोजनि सायक, चोरत चितहि सहज मुसुकात ||

सङ्ग नारि सुकुमारि सुभग सुठि, राजति बिन भूषन नव-सात |
सुखमा निरखि ग्राम-बनितनिके नलिन-नयन बिकसित मनो प्रात ||

अंग-अंग अगनित अनङ्ग-छबि, उपमा कहत सुकबि सकुचात |
सियसमेत नित तुलसिदास चित, बसत किसोर पथिक दोउ भ्रात ||