भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नेह अमिरित झरित जो कबो / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
नेह अमिरित झरित जो कबो
जीव हुलसित फरित जो कबो
जोत जिनिगी में जगमग रहित
मन अन्हरिया हटित जो कबो
लोर काहें नयन से बहित
ई दरदिया घटित जो कबो
आसरा मोर होइत सफल
भास तनिको मिलित जो कबो
पूछितीं अर्थ आनंद के
पट 'विमल' के खुलित जो कबो