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न्याय के रुकलोॅ साँसा छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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न्याय के रुकलोॅ साँसा छै
बिछलोॅ दाव के पासा छै।

सब छटलोॅ केॅ छाँटि जुटैलौ
अच्छा यहाँ तमाशा छै।

सोना के बाजार कहावै
पीतल, ताँबा, काँसा छै।

के पूछै छै बीन-बाँसुरी
तड़बड़-तड़बड़ तासा छै।

वहाँ लोॅत के हाल नै पूछोॅ
भरलोॅ जहाँ कुहासा छै।

अन्यायी के दाव नै चलतै
जहाँ न्याय के वासा छै।

सब मिठाय पंडित लै गेलै
बचलोॅ सिरिफ बतासा छै।