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पक्षियों के पास होता है घोंसला
जानवरों के पास कोई मांद
कितना दुःख हुआ था उस दिन मुझे
जब निकल आया मैं बाहर
पिता के घर की दीवारें फांद
कहा- विदा-विदा,
मैंने बचपन के घर को
जानवरों के पास होती है मांद
पक्षियों के पास कोई घोंसला
धड़का दिल मेरा उदासी के साथ
घुसा जब अजनबी किराए के घर में
पुराना एक झोला था पास
और मन में हौसला
सलीब बना छाती पर मैंने दूर किया
जीवन के हर डर को
(25 जून 1922)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय