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पढ़वै-लिखभै / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
बाबू, पोथी लानी दा
पेन्सिल एक ठोॅ कीनी दा
हम्मू अ, आ, ई पढ़भै
इस्कूली में नै लड़भै
खल्ली खूब घुमैवै तेॅ
अ, आ जानी जैवै तेॅ
खोड़ा लिखवै केना केॅ
दीदी लिखै छै जेना केॅ
हम्मू पढ़वै-लिखभै तेॅ
पाठ विहानै रटभै तेॅ
बड़का आदमी बनभै नी
साहब हेनोॅ दिखभै नी
दादा सेॅ तों बोली केॅ
कही दहोॅ सब खोली केॅ
दीदी लेॅ जे लानै छै
हमरोॅ कैन्हें नी कीनै छै
हमरो पोथी लानी दा
पेन्सिल एकठोॅ कीनी दा ।