भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पता है, त(लाश)-7 / पीयूष दईया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कक्ष में कोख
बेजान कोई
   
बूझ सका न बुझ ने में पा सका
बुझे बिना

लगता है, नाल वही
लगता है, शरीर वही
लगता है, जान वही

अभी, अब नहीं

सफ़ेदा

दूसरी ओर से