पद 57 से 70 तक/पृष्ठ 12
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. ये दोऊ दसरथके बारे |
नाम राम घनस्याम, लखन लघु, नखसिख अँग उजियारे ||
निज हित लागि माँगि आने मैं धरमसेतु-रखवारे |
धीर, बीर बिरुदैत, बाँकुरे, महाबाहु, बल भारे ||
एक तीर तकि हती ताडका, किये सुर-साधु सुखारे |
जग्य राखि, जग साखि, तोषि ऋषि, निदरि निसाचर मारे ||
मुनितिय तारि स्वयम्बर पेखन आये सुनि बचन तिहारे |
एउ देखिहैं पिनाकु नेकु, जेहि नृपति लाज-ज्वर जारे ||
सुनि, सानन्द सराहि सपरिजन, बारहि बार निहारे |
पूजि सप्रेम, प्रसंसि कौसिकहि भूपति सदन सिधारे ||
सोचत सत्य-सनेह-बिबस निसि, नृपहि गनत गये तारे |
पठये बोलि भोर, गुरके सँग रङ्गभूमि पगु धारे ||
नगर-लोग सुधि पाइ मुदित, सबही सब काज बिसारे |
मनहु मघा-जल उमगि उदधि-रुख चले नदी-नद-नारे ||
ए किसोर, धनु घोर बहुत, बिलखात बिलोकनिहारे |
टर्यो न चाप तिन्हते, जिन्ह सुभटनि कौतुक कुधर उखारे ||
ए जाने बिनु जनक जानियत करि पन भूप हँकारे |
नतरु सुधसागर परिहरि कत कूप खनावत खारे ||
सुखमा सील-सनेह सानि मनो रुप बिरञ्चि सँवारे |
रोम-रोमपर सोम-काम सत कोटि बारि फेरि डारे ||
कोउ कहै, तेज-प्रताप-पुञ्ज चितये नहिं जात, भिया रे !
छुअत सरासन-सलभ जरैगो ए दिनकर-बंस-दिया रे ||
एक कहै, कछु होउ, सुफल भये जीवन-जनम हमारे |
अवलोके भरि नयन आजु तुलसीके प्रानपियारे ||