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जनकपुर-प्रवेश

.राग टोड़ी
आये सुनि कौसिक जनक हरषाने हैं |

बोलि गुर भूसुर, समाज सों मिलन चले,
जानि बड़े भाग अनुराग अकुलाने हैं ||

नाइ सीस पगनि, असीस पाइ प्रमुदित,
पाँवड़े अरघ देत आदर सों आने हैं |
असन, बसन, बासकै सुपास सब बिधि,
पूजि प्रिय पाहुने, सुभाय सनमाने हैं ||

बिनय बड़ाई ऋषि-राजौउ परसपर
करत पुलकि प्रेम आनँद अघाने हैं |
देखे राम-लखन निमेषै बिथकित भईं
प्रानहु ते प्यारे लागे बिनु पहिचाने हैं ||

ब्रह्मानन्द हृदय, दरस-सुख लोयननि
अनभये उभय, सरस राम जाने हैं |
तुलसी बिदेहकी सनेहकी दसा सुमिरि,
मेरे मन माने राउ निपट सयाने हैं ||