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परियाँ-बौने / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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भाई, जा रहे
आप हमारे शहर
वहीँ रहते दिन पिछले
बूढ़ा बरगद वहाँ मिलेगा
खड़ा ऊँघता गली-मोड़ पर
उसे पता हे हर मकान का
कौन कहाँ पर किसका है घर
ढलता चाँद
उसी के पीछे
सूरज रोज़ वहीँ से निकले
वहीँ मिलेगा, भाई, आपको
सपनों का भी पता-ठिकाना
नदी-किनारे धूप मिलेगी
दिन-भर बुनती ताना-बाना
वहीँ आरती की
गूँजें हैं
वहीँ घाट पर जल हैं छिछले
वहीं पुराने घर में होंगे
परियाँ-बौने
सँग में बच्चे
डरिये नहीं
वहाँ पायेंगे आप
लोग हैं अब भी सच्चे
शोख कनखियाँ
वहाँ मिलेंगी
देख जिन्हें पत्थर भी पिघले