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पाखु अंधियारु जब राह का खाइगा / सुशील सिद्धार्थ
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पाखु अंधियारु जब राह का खाइगा
एकु बौंड़रु हजारन जुलुम ढाइगा
तब गवाही किरन की दिहेन, औरु का!
हम दिया जइस जिन्दा रहेन, औरु का!!
बैरु की आगि मा जब जली जिन्दगी
झूठु की राह पकरे चली जिन्दगी
प्रीति का हाथु बढ़िकै गहेन, औरु का!!
उइ दुकानै खुलीं आतिमा बिकि रही
पाप कै लेखनी राति दिनु लिखि रही
बात ईमान की तब कहेन, औरु का!!
सरि गवा जौनु पानी जमा होइ गवा
बीज अपने मिटै कै खुदै बोइ गवा
याक नदिया तना हम बहेन, औरु का!!