पीड़ाओं की करुण कहानी / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
पीड़ाओं की करुण कहानी और पर्व सब सुख सागर के,
मैं जीवन के हर अनुभव को, जनसाधारण में बाँटूंगा।
जीवन के सब संघर्षों में,
अगणित रजनी सो न पाया।
दोष नहीं देना मुझको कि,
सपने सब के साध न पाया।
जैसी करनी वैसी भरनी, जो बोया वह ही काटूंगा।
मैं जीवन के हर अनुभव को, जनसाधारण में बाँटूंगा।
हर देवालय के चौखट पर,
धोक निवेदित मैं करता हूँ।
किन्तु बेकली, काम, लोभ से,
कसी अर्गलायें सहता हूँ।
अब जीवन के महाकाश से, निन्दित नीरद सब छाँटूंगा।
मैं जीवन के हर अनुभव को, जनसाधारण में बाँटूंगा।
हारे हुए मनुज के मन में
जोश जीत का भरना होगा।
निष्कलंक रहने की खातिर
अपने मन से लड़ना होगा।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा, वाली विधियों को डाँटूंगा।
मैं जीवन के हर अनुभव को, जनसाधारण में बाँटूंगा।