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पुकारा हमको माँ ने आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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»  पुकारा हमको माँ ने आज

आमरा मिलेछि आज मायेर डाके ।।
 

पुकारा हमको माँ ने आज, मिले हम जैसे भाई मिलें,
एक ही घर में रहकर अरे, पराए होकर कैसे रहें ।।
प्राण में आती यही पुकार, सुनाई पड़ता स्वर बस 'आ',
वही स्वर उठता है गम्भीर, पकड़ अब किसको कौन रखे ।।
जहाँ हम रहते उसमें सहज प्राण से प्राणों का बंधन,
प्राण लेते प्राणों को टान, जानते प्राणों का वेदन ।
मान-अपमान हुए सब लीन, गए नयनों के आँसू सूख,
हृदय में आशा जगी नवीन, देख भाई-भाई का मिलन ।
साधना हुई हमारी सफल, मिले हैं आकर दल के दल
चलो लड़को सब घर के आज, मिलो माँ से जाकर तुम
विकल ।।


मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'स्वदेश' के अन्तर्गत चौथी गीत-संख्या के रूप में संकलित)