भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूरा आसमान का आसमान / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
पूरा आसमान का आसमान
एक इन्द्रधनुषी ताल
नीला साँवला हलका-गुलाबी
बादलों का धुला
पीला धुआँ...
मेरा कक्ष, दीवारें, किताबें, मैं, सभी
इस रंग में डूबे हुए-से
मौन।
और फिर मानो कि मैं
एक मत्स्य-हृदय में
बहुत ही रंगीन,
लेकिन
बहुत सादा साँवलापन लिये ऊपर,
देखता हूँ मौन पश्चिम देश :
लहरों के क्षितिज पर
एक
बहत ही रंगीन हलकापन,
बहुत ही रंगीन कोमलता।
कहाँ है
वो किताबें, दीवारें, चेहरे, वो
बादलों की इन्द्रधनुषाकार लहरीली
लाल हँसियाँ
कहाँ है?