भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतिशोध और सेवा / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
जिस - जिसको जितनी तकलीफ़ दी है
सहज मे ही जिस - जिसको –
एक एक कर सब लौट रहे हैं,
एक एक कर खींचकर फाड़ रहे हैं
मन के हाथ, पैर, होंठ और स्तन ।
और कर्त्तव्य है मेरा यह ,
जतन से सबको इकट्ठाकर
फिर से जोड़ देना यथावत,
पहले की तरह ।
जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित