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प्रीत लाचार छै / विजेता मुद्‍गलपुरी

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दिन बदलतै इहे आश आधार छै
पेट के सामने प्रीत लाचार छै

पी के परदेश भेजै छै नैकी बहू
प्रेम ऐसैं पलै छै गरीबो के घर
जब जवानी जलाबै कोनो ब्याहता
ओय से चुल्हा जलै छै गरीबो के घर

पी के भेजै लेली मन गुनहगार छै
पेट के सामने प्रीत लाचार छै

प्रीत के जोगने जों निठल्ला होतै
एक पैसा के खातिर बेलल्ला होतै
कैसूँ करतै गुजर दीन-आभाव से
लोग सब देखतै हीन के भाव से

आब केकरा हियाँ के देखनिहार छै
पेट के सामने प्रीत लाचार छै

मोन में आश छै कि बदलतै समय
ई गरीबी-ग्रहण से निकलतै समय
लौट के सेज ऐतै सजाबै के दिन
उग्रहण के ऊ गंगा नहाबै के दिन

नेह मजबूर मन ना समझदार छै
पेट के सामने प्रीत लाचार छै