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प्रेम अधिकार रखना / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
मिटाकर अहं भाव सुविचार रखना ।
बहे ज्ञान निर्मल खुला द्वार रखना ।
जलें बन शलाका उजाला लिए हम,
धुआं बन उठे क्यों न अपकार रखना ।
नहीं मान गरिमा बिना ज्ञान के जब,
कभी झूठ दावे न अधिकार रखना ।
युवा क्रांति को अब जगाना उचित है
सही तथ्य दे भाव विस्तार रखना ।
सदी से चली आ रही भेड़ चालें ,
लकीरें नयी खींच टंकार रखना ।
धरा से गगन तक दिशाएँ हमारी,
सभी से मिले प्रेम अधिकार रखना ।