प्रोषितपतिका / रसलीन
1.
औधि गए, हरि कै रसलीन सो बीती हिए घन आग नई है।
ताहि समै हरि आइ अचानक देखत ही सियराइ गई है।
भोरहि फेरि चले तिनकै अब तो गति ऐसी बिचारि लई है।
मानो मसाल बुझी बरि कै फिर नेह में बोरि जराय दई है॥50॥
2.
आय के तीसरी संबत में उन आपनो रूप को रूप दिखायो।
औरन के दिन छीनि लिए अपने रितु को अति पोख बढ़ायो।
औधि जो कीने हुते रसलीन सो टारि के मार हमें तरसायो।
जानि परयो इन बातन तें जग यौ मलमास ही लौंद कहायो॥51॥
3.
जब ते गवन रसलीन कीन्हों तबही तें
एक तो बिरह बैरी मोपै दंड डारयो है।
दूजे षटरितु हूँ सहाथ करि ताको पुनि
दीन्हों है जो दुख कबौं जान न बिचारयो है।
आसरे अवधि के हौं जीवित रही हुती सो
अब ताके बीच पर प्रभु बीच पारयो है।
हा हा करि टारयो तऊ कबहुँ टरत नाँहि
देखो इन लौंद आनि कैसौ रौंद मारयो है॥52॥
4.
जब तें सिधारे परदेस रसलीन प्यारे
तब तें तनिक लेस सुख को न लहिए।
बिरह कसाई दुखदाई भयो आधै नित,
मेरी प्रान लेन यह कासों बिथा कहिए।
एते पर पंचबान बान में गहे कमान
मारै तक तक बान कैसै के निबहिए।
पथिक निहारे कहौ नवल किसोर जू सों
तुम बिन जोर कौन कौन को न सहिए॥53॥