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फ़िरकापरस्त ताक़तें अपने उरूज पर / डी. एम. मिश्र
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फ़िरकापरस्त ताक़तें अपने उरूज पर
जब बोलिए यारो तो बहुत सोच समझकर
आँखों में लाल मिर्च कहीं डाल दे न वह
हमदर्द मेरा कह रहा मत देखिए उधर
ज़िंदा ज़रूर आज हूँ कल का नहीं पता
दस्तार बचाने में कहीं उड़ न जाय सर
हर बार वो आता है बदल कर नया चेहरा
जग में नहीं ऐसा मिलेगा दूसरा जगलर
वो जान रहा है किसी का डर नहीं रहा
जो होगा देंख लेंगे फिर अगले चुनाव पर
ताले लगा रहा है मेरी भूख-प्यास पर
प्यासा मरेगा तू भी किसी रोज़ सितमगर