भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूल / फ़िरदौस ख़ान
Kavita Kosh से
उसने ख़त में फूल भेजा है
फिर मेरी रफ़ाक़त को
एक-एक लफ़्ज़ में
उन गरम सांसों की
दिलनवाज़ ख़ुशबू है
आज फिर मेरी रूह
मुहब्बत से मुअत्तर है
ज़िन्दगी के आंगन में
चांदनी बिखरी है
मगर बेक़रार दिल
ये कहता है
इन ख़ुशगवार लम्हों में
काश वह ख़ुद आ जाता।