बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
हिमालय सुतो जाग जाओ अभी भी,
बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा।
वृहद नीति हिम को बचाने बनाई।
सभी छात्र जन को शपथ भी दिलाई।
मगर; वन, नदी बेच डाली कहो क्यों?
छलकती नदी बाँध डाली कहो क्यों?
अरे! पूछता हूँ महालय तुम्हारा।
बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा।
खनन माफियों को बचाया अभी तक।
हिमालय दिवस भी मनाया अभी तक।
निरंतर इरादे बदलते रहे हो।
हमारी नियति को अखरते रहे हो।
अरे! मूढ़ करनी निरालय तुम्हारा।
बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा।
द्रवित हो रहे कह रहे हैं जुबानी।
निजी पीर को ये पिघलते हिमानी।
खनिज संपदा, बूँटियाँ लुप्त कर दी।
विषैली हवा देह में हाय! भर दी।
अरे! योग प्रिय में शिवालय तुम्हारा।
बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा।
हिमालय सुतो जाग जाओ अभी भी,
बचालो मुझे मैं हिमालय तुम्हारा।