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बजा‌औ मति मुरली, घनस्याम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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बजा‌औ मति मुरली, घनस्याम!
जब लौं करौं रसो‌ई तब लौं मति छेड़ो मधु तान॥
बही धार रस की मुरली-सुर पहुँची चूल्है आय।
कीन्हीं सबरी लकरी गीली, दीन्हीं आग बुझाय॥
धू‌आँ उठ्‌यौ, रुक्यौ मेरो रंधन कौ सगरौ काम।
बिना रसो‌ई कहा खा‌इँगे घर के लोग तमाम॥
मुरली मोय लगै अति मीठी बिसरि जाय सब आन।
या तैं सुनौ बीनती मोरी, मोहन जीवन-प्रान !
मीठी मुरली मैं सुनि पान्नँ, बुझै न मेरी आग।
जो तुम करौ बिवस्था दो‌ऊ (ऐसी) जागै मेरौ भाग॥