भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदळाव / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
समै रो बदळाव
प्रकृति रो जथारथ
अर काल आज में फरक
साफ निजर आवै
जद नेम बणग्यो बदळाव
तो किण खातर रोकां
बदळाव री नूंवी हवा नैं,
नेमां नैं कानून बणतै
कांईं देर लागै ?
ओ लोकतंत्र है
शासण आपणो
अठै कानून बणतैं नीं
लागतै देर लागै।