भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बनी यह सोभा आजु भली / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
बनी यह सोभा आजु भली।
नथ में पोही प्रान-पिआरे निज कर कुसुम कली॥
झीने बसन बिथुर रहीं अलकैं श्री बृषभानु-लली।
यह छबि लखि तन-मन-धन बार्यौ तहँ ’हरिचंद’ अली॥