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बन्दी / अलेक्सान्दर पूश्किन

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बन्द सीखचों के पीछे हूँ जहाँ तमस, सीलन
बन्दी घर में बड़ा हुआ मैं, हुआ यहीं पालन,
औ’ उदास वह साथी मेरा डैने फैलाता
खिड़की के नीचे शिकार को नोच-नोच खाता।

तनिक नोचकर, उसे छोड़ फिर, खिड़की में झाँके
मानो मेरे ही भावों को वह मन में आँके,
चीत्कार भी, उसकी नज़रें जैसे यही कहें
वह अनुरोध कर रहा, "आओ, आओ संग उड़ें!

हम तुम तो आज़ाद विहग, आया वह क्षण आया
उड़ें, जहाँ मेघों के पीछे धवल शृंग-छाया,
वहाँ, जहाँ पर नीला-नीला सागर लहराता
वहाँ, जहाँ पर पवन और बस, मैं ही मँडराता!"


रचनाकाल : 1822